
भारत में पारिवारिक संपत्ति सिर्फ जमीन या मकान नहीं होती, बल्कि यह भावनात्मक जुड़ाव और पारिवारिक परंपरा का प्रतीक भी मानी जाती है। लेकिन जब समय आता है इस संपत्ति को विभाजित या बेचने का, तो अक्सर परिवार के भीतर असहमति, विवाद और कानूनी पेच सामने आते हैं। सुप्रीम कोर्ट के हाल के निर्णयों ने इन मुद्दों पर साफ दिशा-निर्देश दिए हैं, ताकि हर वारिस को न्याय मिले।
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1. अविभाजित संपत्ति की बिक्री अब आसान नहीं
अगर कोई संपत्ति अभी तक “undivided ancestral property” है, यानी सभी वारिसों के बीच उसका विभाजन नहीं हुआ है, तो कोई भी एक व्यक्ति उस संपत्ति को अपनी मर्ज़ी से बेच या ट्रांसफर नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि ऐसी संपत्ति को बेचने या गिफ्ट करने के लिए सभी सह-वारिसों की mutual consent (सहमति) जरूरी है। यदि कोई सदस्य अपना हिस्सा बेचना चाहता है, तो पहले उस संपत्ति का फॉर्मल पार्टिशन (औपचारिक विभाजन) कराना जरूरी होगा।
2. विभाजित संपत्ति पर पूर्ण अधिकार
अगर कोर्ट या आपसी सहमति से संपत्ति का partition हो चुका है, तो जो हिस्सा किसी को मिला है, वह उसकी self-acquired property मानी जाएगी। इसका मतलब है कि अब वह व्यक्ति अपने हिस्से को स्वतंत्र रूप से बेच, ट्रांसफर, गिफ्ट या किसी के नाम will कर सकता है।
यह व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2025 के Angadi Chandranna vs Shankar & Ors. केस में स्पष्ट की गई थी, जिसमें कहा गया कि विभाजन के बाद मिला हिस्सा अब पैतृक नहीं, बल्कि व्यक्तिगत संपत्ति माना जाएगा।
3. बेटियों को मिला बराबर अधिकार
पिछले कुछ दशकों में महिलाओं के अधिकारों को लेकर बड़े बदलाव हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट के Vinita Sharma Vs Rakesh Sharma (2020) फैसले ने बेटियों को पैतृक संपत्ति में पुत्रों के बराबर अधिकार दिया। Hindu Succession (Amendment) Act 2005 के अनुसार, अब बेटियाँ जन्म से ही co-parcener होती हैं, यानी उन्हें भी अपने पैतृक घर में समान हक प्राप्त है, चाहे पिता का निधन 2005 से पहले हुआ हो या बाद में।
4. दावा करने की समयसीमा
हर कानूनी अधिकार के साथ एक तय समयसीमा भी जुड़ी होती है। Limitation Act, 1963 के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति अपनी पैतृक संपत्ति पर 12 साल तक न तो दावा करता है और न कब्जा रखता है, तो उसका हक कमजोर या खत्म माना जा सकता है। इसलिए अगर आपको लगता है कि किसी संपत्ति में आपका हिस्सा है, तो देर किए बिना कानूनी दावा (legal claim) दर्ज कराना जरूरी है।
5. माता-पिता का बेदखली का अधिकार
कई बार बच्चों की लापरवाही या दुर्व्यवहार की वजह से बुजुर्ग माता-पिता को मानसिक और आर्थिक कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं। ऐसे मामलों में Senior Citizens Welfare Act के तहत कोर्ट ने यह अधिकार दिया है कि माता-पिता अपने उन बच्चों को संपत्ति से बेदखल (evict) कर सकते हैं जो उनकी देखभाल नहीं करते। यह फैसला माता-पिता की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने की दिशा में अहम कदम है।
6. आदिवासी महिलाओं के अधिकार का विस्तार
जुलाई 2025 के एक और ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि Scheduled Tribe (ST) समुदाय की महिलाएं भी अपनी पैतृक भूमि में बराबर हक रखती हैं। यह फैसला सामाजिक समानता के सिद्धांत को मजबूत करता है और यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी महिला सिर्फ जाति या परंपरा के आधार पर अपने अधिकारों से वंचित न रहे।
7. केवल बिक्री समझौते से स्वामित्व नहीं मिलता
17 अक्टूबर 2025 के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि सिर्फ agreement to sell पर हस्ताक्षर करने से संपत्ति का स्वामित्व (ownership) ट्रांसफर नहीं होता। जब तक sale deed रजिस्ट्री नहीं होती, तब तक संपत्ति के असली मालिक वही व्यक्ति रहते हैं जिसके नाम पर वह भूमि दर्ज है।
8. सही सलाह और दस्तावेज़ों की जांच सबसे जरूरी
पैतृक संपत्ति से जुड़े मामले संवेदनशील और जटिल होते हैं। इसलिए किसी भी निर्णय से पहले परिवार के सभी सदस्यों से खुली बातचीत, सभी legal documents की जाँच और जरूरत हो तो किसी property lawyer या legal expert की सलाह लेना बेहद जरूरी है। ऐसे फैसले न सिर्फ झगड़े टालते हैं बल्कि परिवार की एकजुटता और शांति को भी बनाए रखते हैं।
















