घर या दुकान किराए पर देकर कई लोग स्थिर आय तो कमाते हैं, लेकिन संपत्ति पर लापरवाही बरतने से पूरा मालिकाना हक ही खो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि अगर कोई व्यक्ति निजी जमीन या मकान पर बिना रुकावट 12 साल तक कब्जा जमाए रखे और असली मालिक खामोश रहे, तो कब्जेदार कानूनी तौर पर मालिक बन सकता है। यह नियम मालिकों को सतर्क रहने की सीख देता है।

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प्रतिकूल कब्जे का मतलब समझें
यह कानून पुराने ब्रिटिश काल से चला आ रहा है और भारत में लिमिटेशन एक्ट के तहत लागू होता है। निजी संपत्ति पर 12 साल का लगातार, खुला और शांतिपूर्ण कब्जा जरूरी है, जिसमें मालिक की कोई आपत्ति न हो। कब्जेदार बिजली-पानी के बिल, टैक्स रसीदें जैसे सबूत दिखा सकता है। सरकारी जमीन पर यह समय 30 साल का होता है, लेकिन किरायेदारों को सीधा फायदा नहीं क्योंकि उनका कब्जा अनुमति से शुरू होता है।
कोर्ट ने पुराने फैसले को क्यों बदला?
सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने 2014 के फैसले को पलटते हुए भूमि विवाद में स्पष्ट किया कि मालिक की चुप्पी ही कब्जेदार को ताकत देती है। अगर 12 साल में कोई मुकदमा न दायर हो, तो संपत्ति कब्जेदार की हो जाती है। वसीयत या पावर ऑफ अटॉर्नी से हक नहीं बनता—सिर्फ वास्तविक कब्जा और समय मायने रखता है। यह फैसला निजी संपत्तियों पर ही लागू है।
मालिक बनें सतर्क, अपनाएं ये उपाय
सबसे आसान बचाव है 11 महीने का किरायानामा हर बार नया बनवाना, जो कब्जे की निरंतरता तोड़ता है। संपत्ति पर नियमित नजर रखें, बिल और टैक्स अपने नाम पर जमा करें। शक हो तो 12 साल से पहले बेदखली का केस ठोक दें। अवैध कब्जे पर तुरंत कार्रवाई से आपकी प्रॉपर्टी सुरक्षित रहेगी और कानूनी झंझट टल जाएगा।
















