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High Court Order: सिर्फ बिक्री एग्रीमेंट (Sale Agreement) से नहीं मिलता संपत्ति पर अधिकार! हाईकोर्ट का सख्त आदेश, जानें क्या है जरूरी

हाईकोर्ट के सख्त आदेश में साफ हुआ कि सिर्फ बिक्री एग्रीमेंट से संपत्ति का अधिकार नहीं मिलता। असली मालिक कौन होगा, ये अब तय करेगा एक अहम डॉक्युमेंट — जानें पूरा मामला और कानून के नजरिए से क्या है जरूरी!

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संपत्ति खरीद-बिक्री के मामलों में अक्सर लोग बिक्री एग्रीमेंट पर भरोसा कर लेते हैं, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में साफ कर दिया है कि ऐसा कोई दस्तावेज संपत्ति पर स्थायी अधिकार नहीं देता। यह फैसला प्रॉपर्टी डील्स में पारदर्शिता लाने वाला है और लाखों खरीदारों के लिए सबक है। कोर्ट ने जोर दिया कि असली मालिकाना हक केवल रजिस्टर्ड सेल डीड से ही मिलता है।

High Court Order: सिर्फ बिक्री एग्रीमेंट (Sale Agreement) से नहीं मिलता संपत्ति पर अधिकार! हाईकोर्ट का सख्त आदेश, जानें क्या है जरूरी

बिक्री एग्रीमेंट की सीमाएं समझें

बिक्री एग्रीमेंट एक साधारण अनुबंध मात्र है, जो विक्रेता और खरीदार के बीच डील की पुष्टि करता है। यह पैसे के लेन-देन और संपत्ति हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू करने का वादा करता है, लेकिन कानूनी रूप से संपत्ति का ट्रांसफर पूरा नहीं करता। ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट की धारा 54 स्पष्ट रूप से कहती है कि अचल संपत्ति का हस्तांतरण तभी वैध होता है जब रजिस्टर्ड डीड हो। बिना इसके, खरीदार केवल मुकदमा दायर करने का हक रखता है, मालिक नहीं बनता। कई बार लोग एग्रीमेंट के बाद कब्जा ले लेते हैं, लेकिन विवाद आने पर यह दस्तावेज बेकार साबित होता है।

एक पारिवारिक विवाद से निकला सबक

कल्पना करें, एक परिवार में संपत्ति बंटवारे का केस चल रहा है। मां ने दो पक्षों के साथ एग्रीमेंट साइन कर लिया और उन्हें केस में शामिल करने की कोशिश की। निचली अदालत ने इसे मंजूर किया, लेकिन हाईकोर्ट ने सख्ती से खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति की बेंच ने कहा कि ऐसे समझौते वाले व्यक्ति बंटवारे के पक्षकार नहीं बन सकते, क्योंकि उनका कोई कानूनी हित नहीं है। यह मामला नोएडा के एक सेक्टर से जुड़ा था, जहां पारिवारिक झगड़े ने सबक सिखाया। नवंबर 2025 का यह फैसला संपत्ति कानून को मजबूत बनाता है।

प्रॉपर्टी डील में क्या चेक करें?

संपत्ति खरीदते समय एग्रीमेंट पर रुकना जोखिम भरा है। हमेशा विक्रेता के टाइटल की पूरी जांच कराएं, जिसमें पुरानी डीड्स, म्यूटेशन एंट्री और एनओसी शामिल हों। रजिस्ट्री कार्यालय से सत्यापन करवाएं और वकील से सलाह लें। अगर पारिवारिक संपत्ति है, तो सभी वारिसों की सहमति जरूरी है। पजेशन लेने से पहले सेल डीड रजिस्टर करवाएं, ताकि भविष्य में कोई दावा न टिके। इन कदमों से धोखाधड़ी का खतरा कम होता है।

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बाजार पर क्या असर पड़ेगा?

यह फैसला प्रॉपर्टी मार्केट को ज्यादा सुरक्षित बनाएगा। अक्सर ब्रोकर एग्रीमेंट दिखाकर डील फाइनल बताते हैं, लेकिन अब खरीदार सतर्क होंगे। डेवलपर्स और बिल्डर्स को भी रजिस्टर्ड डीड पर फोकस करना पड़ेगा। ग्रामीण इलाकों में जहां अनरजिस्टर्ड डील्स आम हैं, वहां जागरूकता फैलेगी। इससे विवाद कम होंगे और कानूनी खर्च बचेगा। कुल मिलाकर, संपत्ति लेन-देन में ईमानदारी बढ़ेगी।

सुरक्षित निवेश का रास्ता

प्रॉपर्टी निवेश सोच-समझकर करें। एग्रीमेंट को पहला कदम मानें, अंतिम नहीं। सरकारी पोर्टल्स पर टाइटल सर्च करें और डिजिटल रजिस्ट्री का फायदा उठाएं। अगर विवाद हो, तो तुरंत कोर्ट जाएं। यह फैसला लाखों लोगों को सशक्त बनाएगा। सुरक्षित डील से ही संपत्ति सच्चा धन बनेगी।

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