दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत के कई इलाकों में सर्दी का असर इतना गहरा हो गया है कि पैरेंट्स सड़कों पर उतर आए हैं। घने कोहरे, तेज ठंड और प्रदूषण की मार से बच्चे स्कूल पहुंच ही नहीं पा रहे। अभिभावक चिल्ला रहे हैं- विंटर ब्रेक का पुराना पैटर्न अब काम नहीं कर रहा, इसे तुरंत बदला जाए!

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क्यों भड़का पैरेंट्स का गुस्सा?
सर्दियों की सबसे काली दस्तक दिसंबर में पड़ती है, जब तापमान माइनस में चला जाता है। फिर भी स्कूलों का ब्रेक क्रिसमस-न्यू ईयर के इर्द-गिर्द तय होता है, जो नवंबर-अंत या दिसंबर शुरू में होनी चाहिए। नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद जैसे शहरों में बच्चे सुबह उठते ही सांस फूलने लगती है। कोहरा इतना घना कि विजिबिलिटी नाममात्र की रह जाती है, और प्रदूषण बच्चों की फेफड़ों पर भारी पड़ रहा। डॉक्टर चेतावनी दे रहे हैं कि ठंड और जहरीली हवा का मेल बच्चों को निमोनिया, अस्थमा जैसी बीमारियों की चपेट में धकेल रहा। पैरेंट्स का कहना है, “बच्चों की जान जोखिम में डालकर पढ़ाई नहीं कराई जा सकती।”
मौजूदा ब्रेक का सच
उत्तर प्रदेश में ज्यादातर स्कूल 20 दिसंबर से 31 दिसंबर तक बंद रहेंगे। जम्मू-कश्मीर के विंटर जोन में छुट्टियां पहले ही शुरू हो चुकीं, जबकि पीएम श्री स्कूलों का ब्रेक 23 दिसंबर से 1 जनवरी तक है। कई जगह कोल्ड वेव ने ब्रेक को जनवरी तक लंबा खींच दिया। लेकिन पैरेंट्स इससे संतुष्ट नहीं। उनका तर्क है कि जब मौसम नवंबर से ही बिगड़ने लगता है, तो ब्रेक क्यों इतना लेट? सोशल मीडिया पर #ChangeWinterBreak ट्रेंड कर रहा, जहां हजारों अभिभावक ऑनलाइन क्लासेस या तत्काल छुट्टियों की मांग कर रहे।
स्कूलों की परेशानी क्या?
स्कूल मैनेजमेंट दोहरी मार झेल रहा। एक तरफ सिलेबस पूरा करने का दबाव, दूसरी तरफ पैरेंट्स का हल्ला। ब्रिटिश काल से चला आ रहा यह शेड्यूल अब भारतीय मौसम से मेल नहीं खाता। हिमाचल जैसे राज्यों में शिक्षकों के विरोध पर 24 घंटे में ब्रेक बदल दिया गया। एक्सपर्ट्स कहते हैं, जोन-वाइज ब्रेक सिस्टम अपनाना चाहिए- जहां ठंड ज्यादा, वहां छुट्टियां पहले। प्राइवेट स्कूल असोसिएशन ने कहा, “हम तैयार हैं, लेकिन सरकार का निर्देश जरूरी।”
आगे का रास्ता क्या?
अगर पैरेंट्स का दबाव बढ़ा तो जिला मजिस्ट्रेट स्तर पर आदेश जारी हो सकते हैं। कई जगह पहले ही पार्टियल क्लोजर हो चुका। अभिभावक संगठन मीटिंग बुला रहे, जहां डिमांड होगी- दिसंबर शुरू से 15 जनवरी तक फुल ब्रेक। सरकार को मौसम पूर्वानुमान के आधार पर फ्लेक्सिबल पॉलिसी लानी होगी। बच्चे सुरक्षित रहें, यही सबसे बड़ा मुद्दा है। क्या स्कूल सुनेगे पैरेंट्स की पुकार, या सिलेबस की जिद पर अड़े रहेंगे? आने वाले दिन बताएंगे।
















