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High Court Alert: पत्नी के नाम पर प्रॉपर्टी खरीदने वाले हो जाएं सावधान! हाईकोर्ट ने ‘बेनामी संपत्ति’ पर सुनाया बड़ा फैसला, जा सकती है जमीन

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि पत्नी के नाम पर खरीदी गई संपत्ति तभी उसकी निजी मानी जाएगी, जब वह उसकी खुद की कमाई से खरीदी गई हो। यदि संपत्ति पति की आय से ली गई है, तो वह पारिवारिक संपत्ति होगी, जिस पर पत्नी का अकेला अधिकार नहीं रहेगा।

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पत्नी के नाम प्रॉपर्टी खरीदने वाले सावधान, HC का फैसला

भारतीय परिवारों में अक्सर यह परंपरा रही है कि पति अपनी आय से खरीदी गई संपत्ति पत्नी के नाम पर रजिस्टर्ड करवाता है। ऐसा करने के पीछे दो बड़े कारण होते हैं पहला, टैक्स से कुछ राहत मिलना या स्टाम्प ड्यूटी में छूट का लाभ उठाना, और दूसरा, घर की महिला के नाम पर संपत्ति रखकर आर्थिक सुरक्षा का एहसास दिलाना। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया फैसले ने इस सोच को एक नई दिशा दे दी है।

कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि पत्नी के नाम पर खरीदी गई वह संपत्ति, जो उसकी खुद की कमाई से नहीं खरीदी गई है, उसे उसकी निजी संपत्ति नहीं माना जाएगा।

क्या कहा हाईकोर्ट ने?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि यदि कोई व्यक्ति अपनी मेहनत की कमाई से जमीन या मकान खरीदता है और उसे पत्नी के नाम पर रजिस्टर्ड करवाता है, तो यह संपत्ति पारिवारिक संपत्ति मानी जाएगी। यानी पत्नी को उस पर पूर्ण अधिकार नहीं मिलेगा। अदालत ने माना कि केवल नाम पर रजिस्ट्री होने से किसी व्यक्ति की स्वामित्व की स्थिति नहीं बदल जाती। हक़ वही पाता है जिसने अपनी आय से वह संपत्ति तैयार की या खरीदी हो।

पत्नी के निजी स्वामित्व का सवाल

कई महिलाएं शादी के बाद आर्थिक रूप से पति पर निर्भर होती हैं। इस कारण कई बार पति अपनी आय से संपत्ति खरीदकर पत्नी के नाम पर कर देता है। हालांकि यह कदम सामाजिक रूप से सकारात्मक दिखता है, लेकिन कानूनी दृष्टि से स्थिति भिन्न हो सकती है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत यह माना जाता है कि यदि पत्नी यह साबित नहीं कर पाती कि संपत्ति उसकी अपनी आय से खरीदी गई है, तो इसे पति की कमाई से अर्जित संपत्ति माना जाएगा।

इस स्थिति में पत्नी संपत्ति को बेच नहीं सकती, न गिरवी रख सकती है, न दान कर सकती है। शादीशुदा जीवन में भी और पति की मृत्यु के बाद भी, ऐसी संपत्ति पर परिवार के अन्य सदस्यों का अधिकार बरकरार रहता है।

स्टाम्प ड्यूटी की छूट और उसका असली अर्थ

सरकारें महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के उद्देश्य से संपत्ति रजिस्ट्री पर स्टाम्प ड्यूटी में 1 से 2 प्रतिशत तक की छूट देती हैं। इसका मकसद महिलाओं को स्वामित्व की दिशा में प्रोत्साहित करना है। लेकिन यह छूट तभी सार्थक है जब महिला अपनी मेहनत की कमाई से जमीन या मकान खरीदे। यदि संपत्ति केवल टैक्स बचाने या औपचारिक रूप से पत्नी के नाम पर रखने के लिए खरीदी गई है, तो उसका कानूनी असर सीमित रहेगा।

पति की मृत्यु के बाद क्या होता है?

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, यदि पति की मृत्यु होती है तो पत्नी को संपत्ति में बच्चों के समान हिस्सा प्राप्त होता है। लेकिन जब तक पति जीवित है और संपत्ति उसकी आय से खरीदी गई है, पत्नी को उस पर सीधा मालिकाना अधिकार नहीं होता। वह संपत्ति में हिस्सेदार तभी बनती है जब पति की मृत्यु के बाद वसीयत न होने की स्थिति में उत्तराधिकार लागू होता है।

इस फैसले के मायने

हाईकोर्ट का यह फैसला उन लोगों के लिए चेतावनी है जो टैक्स या स्टाम्प ड्यूटी बचाने के नाम पर पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदते हैं। अदालत ने साफ कर दिया है कि केवल नाम पर रजिस्ट्री से स्वामित्व नहीं बदलता। इससे परिवारों के भीतर पारदर्शिता बढ़ेगी और भविष्य में होने वाले संपत्ति विवादों में कानूनी स्थिति ज्यादा स्पष्ट रहेगी।

यह निर्णय महिलाओं के लिए भी महत्वपूर्ण संदेश रखता है आर्थिक स्वतंत्रता ही असली स्वामित्व की नींव है। अगर महिला अपनी मेहनत की कमाई से संपत्ति खरीदेगी, तभी वह उस पर पूर्ण मालिकाना हक़ रख सकेगी।

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