
नई दिल्ली: सोशल मीडिया पर हाल के दिनों में एक सनसनीखेज दावा तेजी से फैल रहा है—कि म्यांमार का एक हिस्सा, जिसे “जोलैंड” (Zoland) कहा जा रहा है, भारत का 29वां राज्य बन सकता है। यह खबर जितनी आकर्षक लगती है, उसके पीछे की हकीकत उतनी ही दिलचस्प और जटिल है।
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कहाँ से शुरू हुई चर्चा?
इस पूरे विवाद की शुरुआत मिजोरम के एक राज्यसभा सांसद और म्यांमार के चिनलैंड काउंसिल के नेताओं के बीच हुई एक मुलाकात से हुई। चर्चा के दौरान कहा गया कि भारत और म्यांमार में रहने वाले चिन और मिजो समुदायों के बीच गहरे सांस्कृतिक रिश्ते हैं, और भविष्य में एकजुटता की संभावना पर भी बातचीत हुई। यहीं से यह दावा फैलने लगा कि म्यांमार का चिन इलाका भारत में शामिल हो सकता है।
हालाँकि, सरकार के किसी भी मंत्रालय—चाहे विदेश मामला हो या गृह मंत्रालय—ने इस तरह का कोई प्रस्ताव भेजे जाने की पुष्टि नहीं की है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक व्यक्तिगत बयान था, न कि भारत की आधिकारिक नीति।
रणनीतिक नजरिया और ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’
जो लोग इस विचार का समर्थन कर रहे हैं, वे इसे भारत की Act East Policy के दृष्टिकोण से एक ऐतिहासिक अवसर मानते हैं। उनका तर्क है कि इससे भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया तक सीधा जमीनी संपर्क और प्राकृतिक संसाधनों—जैसे गैस, तेल, और रेयर अर्थ एलिमेंट्स—तक पहुँच मिल सकती है। पर विश्लेषक मानते हैं कि यह सोच फिलहाल थ्योरिटिकल (theoretical) है और व्यावहारिक नहीं।
क्या कहती है जमीनी स्थिति?
वास्तविकता इससे बिल्कुल उलट है। भारत सरकार म्यांमार सीमा पर सुरक्षा को मज़बूत कर रही है। Free Movement Regime (FMR)—जो दशकों से सीमा पार आवाजाही की अनुमति देता था—को खत्म किया जा चुका है। साथ ही, लगभग 400 किलोमीटर लंबी भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने का काम तेज़ी से चल रहा है। यह कदम स्पष्ट संकेत देता है कि भारत फिलहाल किसी नए विलय की नहीं, बल्कि सीमा सुरक्षा की दिशा में काम कर रहा है।
अंतरराष्ट्रीय और राजनीतिक बाधाएँ
भू-राजनीतिक दृष्टि से म्यांमार का कोई भी हिस्सा भारत में मिलना लगभग असंभव है। अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत यह किसी संप्रभु राष्ट्र के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप माना जाएगा। साथ ही, म्यांमार में चीन की भारी मौजूदगी और निवेश भारत के लिए सीधी चुनौतियाँ पैदा कर सकते हैं। यदि भारत ऐसा कदम उठाए, तो यह न केवल चीन से टकराव बढ़ाएगा, बल्कि पूर्वोत्तर राज्यों में दशकों से स्थापित शांति को भी खतरे में डाल सकता है।
निष्कर्ष: चर्चा है, लेकिन हकीकत नहीं
चिन और मिजो समुदायों के बीच का सांस्कृतिक जुड़ाव निर्विवाद है। लेकिन “जोलैंड” नाम से किसी नए भारतीय राज्य की संभावना मौजूदा हालात में एक भू-राजनीतिक कल्पना से अधिक कुछ नहीं। भारत का मौजूदा फोकस सीमाओं को सुरक्षित करने और सीमा पार से आने वाली चुनौतियों को नियंत्रित करने पर है, न कि किसी नए भूभाग के विलय पर।
















